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कविता: आज का अख़बार दर्दनाक था ,सामने के न्यूज़ में हाहाकार था।

 बात कुछ कलम से की जाए🖋️



आप सभी को मैं बताना चाहूंगा के यह कविता जय सिंह (जिग्ना) जी ने लिखी है जिसके बोल कुछ इस तरह है "आज का अख़बार दर्दनाक था ,सामने के न्यूज़ में हाहाकार था"

आज का अख़बार दर्दनाक था, सामने के न्यूज़ में हाहाकार था।

 नीचे देखा तो सांश रुकने सी लगी कही ऑक्सीजन नही तो कही बेड नही, 

 ना जाने कौन कहता है इसे भारत महान, कही रोने की आवाज तो कही गूंजती चीखें, तो कही आग में जलती चिताओ की लपटें।

 आये थे इसे विश्वगुरु बनाने ,पर रहे गया यह चंद लकीरो का पैमाना।

होश हो तो होश में आओ , समय से पहले कोई पैगाम बनाओ ।

देश रहा तो विश्व गुरु भी बन जायेगा  , सेनेटाइजर हम अपनाये किसी के बहकावे में न आए।

 घर में रह कर ही खुद का उपचार कराये।



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